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शनिवार, 17 जून 2017

दशकों से यमुना कटरी क्षेत्र के लोग पानी की समस्या से जूझने को मजबूर

फतेहपुर, शमशाद खान । दशकों से पीने के पानी की समस्या से जूझ रहे यमुना तटवर्ती क्षेत्रों में बसे गांवों के ग्रामीणों की तरफ न तो प्रशासन की नजरें पहुंच रही है न ही वे लोग इस आहम परेशानी के निस्तारण के प्रति गंभीर है जो चुनाव के मौके पर इनके बीच तरह-तरह के हसीन सपना दिखा ने का काम करते हैं नदी का सहारा न हो तो यहां के मानव व पशु प्यासे ही मर जाये। बिन्दकी तहसील अन्तर्गत यमुना तटवर्ती क्षेत्र के बसी करीब एक दर्जन से अधिक ग्राम सभाएं तथा आधा सैकड़ा से ज्यादा उनके अधीन मजरों में पीने के पानी की समस्या ग्रामीणों के बीच पहाड़ बनकर खड़ी है। दशकों से इस समस्या के निस्तारण की उम्मीद रखने वालों को केवल भरोसा मिलता रहा हैं किसी ने निदान के प्रति गंभीरता नही दिखायी है। जिसकी वजह से पेयजल की समस्या दिन प्रति दिन गंभीर रूप धारण करती चली गयी हैं वर्तमान समय पर यह समस्या ग्रामीणों के बीच कोढ़ बन चुकी हैं यमुना नदी का सहारा न हो तो यहां रहने वाले लोग व इनके पलने विचरण करने वाले पशु प्यासे ही मर जाये। विजयीपुर विकास खण्ड के ग्राम अहमदगंज तिहार गढ़। एकड़ला, सरौली, चंदापुर, कुल्ली, नसीरपुर, पहाड़पुर, असहर रामपुर, भसरौल रामपुर, इटरौड़ा, लोची डेरा समेत धाता विकास खण्ड के ग्राम रानीपुर, दामपुर, अजरौली आदि दर्जनों ग्राम व इनके अचीन मजरों मे ंपीने के पानी की समस्या से रहने वाले ग्रामीण दशकों से जूझ रहे हैं गांव में लगे ज्यादातर हैण्ड पंप खराब पड़े है। कुएं सूख चुके तालाबों में धूल उड़ रही हैं सरकारी नलकूप छोटी-मोटी खामियों के कारण बंद पड़े है। पानी के सभी तरह के साधन धड़ाम है। केवल यमुना नदी का सहारा इस क्षेत्र में रहने वाले वाले ग्रामीणों के लिये बचा है। जब नदी का पानी भी इनकी पहुंच से दूर चला जाता है तब इन्हे दिन में भी तारे नजर आने लगते है। सबसे अधिक परेशानी से पशुओं को गुजरना पड़ता हैं इनकी प्यास बुझाने के लिये पशुपालकों को लोहे के चने चबाने के सामान साबित होता है। क्षेत्र में पीने के पानी की अहम समस्या दशकों से विराजमान है। किसी ने मुड़कर नही देखा है। चुनाव के मौके पर वोट मांगने वाले केवल भरोसा देकर निकल जाते हैं यदि जीत गये तो पांच साल तक इनकी तरफ रूख नही करते है। हार गये तो बहाना रहता है। कि अब तो हमारे हाथ में कुछ नही हैं बेचारे ग्रामीण मन मसोस करके रह जाते हैं खास बता तो यह है शासन-प्रशासन भी इसके निराकरण की तरह गंभीरता नही दिखाता है। जब कभी किसी का दौरा होता है तो ग्रामीणों को केवल शांत रहने को कहा जाता हैं जिधर देखों पानी के लिये त्राहि-त्राहि मची है। जंगलों पर विचरण करने वाले जानवर पक्षी पानी के बिना विवश बने हैं प्यास बुझाने के लिये घण्टों की मेहनत के बाद भी इन्हे पानी नसीब नही हो पाता है। मजेदार बात तो यह है कि क्षेत्र में सर्वाधिक निषाद विरादरी के लोग इस समस्या से जूझ रहे हैं राज्यमंत्री भी केवल वोट के मौके पर इन्हे याद करती हैं इसके बाद धूमकर न ही देखती हैं 

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