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शनिवार, 27 जुलाई 2019

कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को किया आगाह, सावधानी बरतें

बुन्देलखण्ड के कृषकों को कृषि से संबन्धित कृषि वैज्ञानिकों की सलाह 

बांदा, कृपाशंकर दुबे । बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों द्वारा बुन्देलखण्ड के किसानों को समय-समय पर कृषि सम्बन्धी जानकारियां एवं सलाह दी जा रही है। इसी क्रम में जुलाई माह के द्वितीय पखवारे में किसानों को जिन-जिन बातों का ध्यान रखना चाहिए, इस बारे में बताया गया है। तिल, मूंग उर्द व अरहर की फसल को जड़ गलन व झुलसा आदि मृदा व बीज जनित रोगों के बचाव हेतु बीजों को थीरम व
कार्बेन्डाजिम से 02 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करके बोएं। इस समय रोपित की जाने वाली सब्जियों जैसे टमाटर, बैगन मिर्च आदि की पौध को रोपड़ से पूर्व जड़ गलन, झुलसा व अन्य मृदा जनित रोगों के नियंत्रण हेतु पौध की जड़ो को कार्बेन्डाजिम 01 ग्राम प्रति ली0 पानी के घोल अथवा जैव कवकनाशी ट्राइकोडरमा 05 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल में 30 मिनट तक उपचारित करना चाहिए।
बुन्देलखण्ड की मृदाओं में कार्बनिक पदार्थ की कमी है। इस कमी दूर करने के लिये कृषक भाई अपने खेत में न्यूनतम 2 टन प्रति हेक्टेयर वर्मीकम्पोस्ट अथवा 5 टन प्रति हेक्टयर की दर से सडी गोबर की खाद का प्रयोग बुवाई से कम से कम एक सप्ताह (7 दिन) पहले करें। मृदाओं में उपलब्ध फास्फोरस भी बहुत कम है। अतः बुवाई के समय फास्फेटिक उर्वरक का प्रयोग करने से दलहन फसलों की जड़ों में गांठो का विकास अच्छा होता है। जिससे फसल की उपज व भूमि की उर्वरा शक्ति में वृद्धि होती है। अच्दे जमांव के लिये यह आवश्यक है कि सभी दलहन फसलों के बीजों को राइजोवियम कल्चर से शोधित करने के पश्चात बुवाई करें। बुन्देलखण्ड की मुख्य फसल दलहन है। अतः खरीफ के समय बोई जाने वाली फसलों जैसे-मूंग व उरद की फसल में 10.20 किग्रा0 छए 40.50 केजी एवं 20 किग्रा0 पोटाश का प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। नत्रजन व फाॅस्फोरस की डीएपी 100 किग्रा की दर से बुवाई के समय प्रयोग किया जा सकता है। बीज की बुवाई सोडड्रिल से करें व डीएपी उर्वरक के बीज के साथ मशीन से दें। अरहर की फसल में 25.30 किग्रा नत्रजन 50.60 किग्रा0 च्2 व्5 फास्फोरस 20.30 किग्रा पोटाश का प्रयोग करें। जिंक की कमी वाली मृदाओं में 10 किग्रा का प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। तिलहन की मुख्य फसल तिल में 20-30 किग्रा नत्रजन 50-60 किग्रा फास्फोरस व 30 किग्रा पोटेशियम का प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। बागवानी वाली फसलों के लिये निमनलिखित बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिये। बगीचे में जल भराव से बचाव करें। आम करौंदा के फलों की तुड़ाई करायें। नींबू के पौधों को फटने से बचाव करें। आम के पौधों को मिलीवर्ग से बचाने के लिये पौधों के एक मी0 ऊंचाई कर ग्रीस लगाकर पालीथीन बांध दें। वानिकी फसलांे के प्रबन्धन हेतु नव अंकुरित पौध जैसे- शीशम, अर्जुन, कंजी, जामुन इत्यादि की लम्बाई 2-5 से0मी0 होने पर अथवा उसमें 4-7 पलियाॅं आने पर पाॅलीथीन, थैलों में या प्रतिरोपण क्यारियों में प्रत्यारोपित करें। प्रतिरोपण करने के बाद पौध की जड़ के चारों तरफ की मिट्टी को दबा दें, ताकि जड़ में बाहरी हवा प्रवेश न कर सके। यह कार्य सांयकाल 4ः00 बजे के बाद करें, जिससे धूप से पौधों के मरने की सम्भावना से बचा जा सके। प्रतिरोपण के तुरन्त बाद हजारे से हल्की सिंचाई करें। बीज के अच्छी तरह से अंकुरित होने तक खरपतवार हाथ से निकालें। वर्षा ऋतु में पशुपालकों को ध्यान रखने योग्य बातें- पशुओं को बांधने के स्थान के छत को साफ व दुरूस्त रखें, ताकि पानी का रिसाव न हो। बाहय परजीवी जैसे-मक्खी, चिचड़ी, जूं, इत्यादि का प्रकोप भी वर्षा ऋतु में बढ़ जाता है, जिसके उपचार हेतु कीटनाशक का छिड़काव पशुशाला में नियमित अन्तराल पर करते रहें। पशुओं के दाने, चारे के भण्डार में भी नमी व पानी के जमाव न होने दें। 

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