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रविवार, 7 अप्रैल 2019

कांग्रेस संगठन में गुटबाजी के चलते राकेश की नैया कैसे होगी पार

फतेहपुर, शमशाद खान । केन्द्र की सत्ता पर अधिकतर राज करने वाली कांग्रेस पार्टी जिले में 35 वर्षों से वनवास झेल रही है। पूर्व केन्द्रीय मंत्री हरीकृष्ण शास्त्री वर्ष 1984 में यहां से सांसद हुए थे। इसके बाद से लगातार कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा है। इसका प्रमुख कारण यह है कि कांग्रेस संगठन में नेताओं की कमी तो नहीं है लेकिन कार्यकर्ताओं की बेहद कमी है। संगठन में लगातार गुटबाजी भी हावी रहती है। ऐसे में सपा का दामन छोड़कर कांग्रेस का हाथ थामने वाले पूर्व सांसद राकेश सचान की नैया इस बार के लोकसभा चुनाव में कैसे पार होगी? यह एक बड़ा प्रश्न है। इसके अलावा शनिवार को एक दिवसीय भ्रमण पर आयीं कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी के रोड शो का मतदाताओं पर कितना असर पड़ेगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। 
बताते चलें कि देश की आजादी में कांग्रेस पार्टी का अहम योगदान था। पहली सरकार बनने पर कांग्रेस के पं0 नेहरू देश के प्रथम प्रधानमंत्री बने थे। इसके बाद से लगातार कांग्रेस ने ही देश में अधिकतर राज किया। देश के सभी प्रदेशों में कांग्रेस का डंका बजता रहा। लेकिन वर्ष 1984 के बाद से कांग्रेस की स्थिति जिले में बद से बदतर हो गयी। वर्ष 1957 के चुनाव में कांग्रेस ने अंसार हरवानी को जिले से प्रत्याशी बनाया और उन्होने जीत हासिल की। इसके बाद वर्ष 1967 में कांग्रेस के टिकट पर एसबी सिंह, वर्ष 1971 में कांग्रेस से संतबक्स सिंह ने चुनाव जीता। वर्ष 1980 में हरीकृष्ण शास्त्री को कांग्रेस ने मैदान में उतारा और उन्होने जीत हासिल कर कांग्रेस का परचम फहराने का काम किया। सरकार के गठन पर उन्हें केन्द्रीय मंत्री बनाया गया। वर्ष 1984 के चुनाव में केन्द्रीय मंत्री हरीकृष्ण शास्त्री पर दोबारा दांव लगाया गया और उन्होने फिर जीत हासिल कर यह साबित कर दिया कि कांग्रेस का जिले में वजूद कायम है। लेकिन वर्ष 1984 के बाद से जिले में कांग्रेस का जनाधार गिरता चला गया और किसी भी प्रत्याशी ने आज तक जीत हासिल नहीं की। यूं कहा जाये कि 35 वर्षों से कांग्रेस जिले में सूखे की मार झेल रही है। कांग्रेस का जनाधार गिरने के कारण संगठन पर भी इसका बेहद प्रभाव पड़ा। संगठन में नेताओं की कोई कमी नही है लेकिन कार्यकर्ताओं की कमी बरकरार है। जिसके कारण यहां से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों को करारी हार का सामना करना पड़ता है। पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं जिले से दो बार सांसद रहे हरीकृष्ण शास्त्री के पौत्र विभाकर शास्त्री ने भी इस लोकसभा सीट से दो बार चुनाव लड़ा। लेकिन उन्हें भी हार का ही मुंह देखने को मिला। इस तरह से जिले में कांग्रेस की पकड़ ढीली होती चली गयी। आज की वर्तमान स्थिति पर गौर किया जाये तो संगठन में नेताओं की कमी नहीं है। जिला संगठन की जिम्मेदारी वर्तमान में अखिलेश पाण्डेय के हाथों में है। शहर की कमान मो0 आरिफ गुड्डा बखूबी निभा रहे हैं। नगर अध्यक्षों में कलीम उल्ला भी शामिल हैं। लेकिन कांग्रेस के बूथ व सेक्टर कमेटियों पर गौर किया जाये तो संगठन बेहद निष्क्रिय है। जिसके चलते प्रत्याशी राकेश सचान को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। संगठन में हावी गुटबाजी के कारण प्रत्याशी राकेश सचान की जीत आसान होने वाली नही है। क्योंकि राकेश सचान के प्रचार पर गौर किया जाये तो वह अपने समर्थकों संग ही जिले में घूम-घूमकर पुरानी उपलब्धियों को गिनाकर वोट की अपील कर रहे हैं। इसके अलावा इस बार प्रदेश में भी कांग्रेस अपने दम पर चुनाव लड़ रही है। प्रदेश संगठन के साथ-साथ राष्ट्रीय नेतृत्व ने भी चुनाव में पूरी ताकत झोंक रखी है। अभी हाल ही में कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव मनोनीत की गयी प्रियंका गांधी वाड्रा का तूफानी दौरा लगातार जारी है। इसके क्रम में शनिवार को राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी जिले में एक दिवसीय भ्रमण पर आयीं। कई कस्बों व गांवों में नुक्कड़ सभाएं, महिला संवाद व शहर क्षेत्र में विशाल रोड शो कर कांग्रेस प्रत्याशी राकेश सचान के पक्ष में माहौल बनाने का काम किया। उनका यह दौरा मतदाताओं पर कितना असर डालेगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। संगठन में हावी गुटबाजी के कारण राकेश सचान की जीत की राह इस बार भी आसान नहीं दिख रही है। कई राजनीतिक पंडितों का मानना है कि प्रत्याशी की जीत संगठन की ताकत में होती है। इसलिए कांग्रेस को चुनाव से पहले बूथ व सेक्टर स्तर पर काम करने की जरूरत थी। लेकिन कांग्रेस आज भी अपने वही पुराने ढर्रे पर चल रही है। 

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